न्यायालय खनिजों पर राजस्व, बकाया कर की वसूली को लेकर राज्यों की याचिकाएं सुनने को सहमत

admin
4 Min Read

नई दिल्ली
 उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह केंद्र एवं खनन कंपनियों से हजारों करोड़ रुपये मूल्य के खनिज अधिकार तथा खनिज युक्त भूमि से मिलने वाले राजस्व तथा बकाया करों की वसूली के संदर्भ में झारखंड जैसे खनिज संपन्न राज्यों की कई याचिकाओं को सुनने के लिए एक पीठ का गठन करेगा।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ ने 25 जुलाई को 8:1 के बहुमत से फैसला सुनाया था कि खनिज अधिकारों पर कर लगाने का वैधानिक अधिकार संसद में नहीं बल्कि राज्यों में निहित है।

शीर्ष अदालत ने 14 अगस्त को अपने एक फैसले में स्पष्ट किया था कि इस फैसले का संभावित प्रभाव नहीं होगा और राज्यों को एक अप्रैल, 2005 से 12 वर्षों की अवधि के दौरान केंद्र एवं खनन कंपनियों से खनन अधिकार एवं खनिज युक्त भूमि से मिलने वाले हजारों करोड़ रुपये के राजस्व एवं बकाया करों की वसूली की अनुमति दी।

झारखंड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने प्रधान न्यायाधीश एवं न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ से बकाया राशि की वसूली एवं उनके समक्ष आने वाले कानूनी बाधाओं को दूर करने के लिए इन याचिकाओं को एक पीठ को सौंपने का अनुरोध किया।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने अनुरोध करते हुए कहा, ‘‘यह नौ सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले के बाद उठाए गए कदमों के संदर्भ में है। सभी मामलों को अब एक साथ किया जाए।’’

कुछ निजी खनन कंपनियों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि अब राज्य धन की वसूली चाहते हैं।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं याचिकाओं को सुनवाई के लिए विशेष रूप से (संविधान) पीठ में शामिल न्यायाधीशों में से किसी एक को सौंपना चाहूंगा।’’

उच्चतम न्यायालय ने 25 जुलाई के फैसले में कहा था कि राज्यों को कर और राजस्व लगाने का अधिकार है। इस फैसले के बाद द्विवेदी ने खनिजों एवं खनिजयुक्त भूमि पर कर लगाने को लेकर झारखंड के समक्ष आने वाली कानूनी बाधाओं का जिक्र किया था।

उन्होंने कहा था कि एक मुद्दा अब भी बना हुआ है कि खनिजों एवं खनिजयुक्त भूमि पर राजस्व एकत्रित करने के लिए झारखंड का कानून, जिसे इससे पहले रद्द कर दिया गया था और अब इसे बरकरार रखे जाने की आवश्यकता है।

द्विवेदी के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता तपेश कुमार सिंह भी झारखंड की ओर से पेश हुए थे। उन्होंने कहा, ‘‘जब तक कानून को वैध घोषित नहीं किया जाता है, हमलोग खनिजों और खनिजयुक्त भूमि पर कर संग्रह नहीं कर सकते। कृपया इसे उचित पीठ के समक्ष जल्द सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें।’’

उन्होंने पटना उच्च न्यायालय की रांची पीठ के एक फैसले का हवाला दिया था, जिसमें 22 मार्च 1993 के अपने फैसले में खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकरण अधिनियम 1992 की धारा 89 को रद्द कर दिया गया था।

 

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *