बिहार में कलेक्ट्रेट ऑफिस की होगी नीलामी! जानें कोर्ट ने क्यों जारी किया यह आदेश?

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मधुबनी
 ज़रा सोचिए जब डीएम, एसपी कार्यालय परिसर ने ही कोर्ट का नोटिस चिपका दिया जाए कि 15 दिन में पूरे समाहरणालय को नीलाम कर दिया जाएगा तो कैसा लगेगा। शायद आपको लगेगा कि ये कोई मजाक होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। बिहार हाई कोर्ट के आदेश की अवहेलना के चलते मधुबनी व्यवहार न्यायालय ने मधुबनी कलेक्ट्रेट (समाहरणालय) की नीलामी का आदेश दे दिया है। यह आदेश 4 करोड़ 17 लाख रुपये से अधिक की बकाया राशि के भुगतान न होने पर दिया गया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर तय राशि 15 दिनों के अंदर नहीं चुकाई गई, तो प्रशासनिक मुख्यालय की संपत्ति की नीलामी होगी।

हाईकोर्ट के आदेश की अनदेखी बनी मुसीबत

मधुबनी के डीएम और एसपी कार्यालय में कोर्ट का नोटिस चस्पा कर दिया गया है, जिसमें चेतावनी दी गई है कि 15 दिनों में ₹4.17 करोड़ की राशि नहीं चुकाई गई तो पूरा समाहरणालय नीलाम कर दिया जाएगा। यह आदेश हाईकोर्ट के तत्कालीन जस्टिस घनश्याम प्रसाद की ओर से 20 अगस्त 2014 को पारित आदेश के अनुपालन में दिया गया है। यह मामला रतन कुमार केडिया, निदेशक – मेसर्स राधा कृष्ण एक्सपोर्ट्स प्रा. लि., बनाम पंडौल कोऑपरेटिव सूत मिल, बिहार सरकार एवं अन्य के बीच चल रहा है।

केडिया के अधिवक्ता वरुण कुमार झा के अनुसार, जस्टिस घनश्याम प्रसाद ने अपने आदेश में विपक्षी को एडवांस भुगतान 28 लाख 90 हजार 168 रुपये, क्षतिपूर्ति के रूप में 2 लाख रुपये, मुकदमा खर्च 70 हजार और आर्बिट्रेटर को फीस के रूप में एक लाख 80 हजार रुपए भुगतान करने का आदेश दिया था। अधिवक्ता झा के अनुसार, आदेश में पारित रकम भुगतान नहीं करने पर 18 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करने का भी आदेश दिया गया था।

आदेश का पालन नहीं करने पर 2016 में कंपनी के डायरेक्टर ने जिला जज मधुबनी के न्यायालय में जस्टिस घनश्याम प्रसाद के आदेश का अनुपालन के लिए मामला दायर किया था। अब इसी मामले में कोर्ट ने आदेश दिया है कि 15 दिनों के अंदर 4 करोड़ 17 लाख 24 हजार 459 रुपए नहीं दिया गया तो मधुबनी समाहरणालय की नीलामी कर दी जाएगी।

पूरा मामला क्या है?

अधिवक्ता वरुण कुमार झा एवं हरिशंकर श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 1996-97 में बंद हुई पंडौल कोऑपरेटिव सूत मिल के पुनः संचालन के लिए रतन कुमार केडिया की कंपनी और मिल के पदाधिकारियों के बीच करार हुआ था। केडिया की कंपनी ने पूंजी और कच्चा माल उपलब्ध कराया, जबकि संचालन का जिम्मा सरकार और मिल प्रशासन पर था। एडवांस राशि देने के बाद जब कंपनी ने बिल मांगा, तो इनकार कर दिया गया। इसके बाद कंपनी ने भुगतान बंद कर दिया और मिल फिर से बंद हो गया। 1999 में कंपनी ने कोर्ट में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, जो खारिज होने के बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा।

प्रशासन की चुप्पी और तैयारी

आज जब कोर्ट का नोटिस समाहरणालय परिसर में चिपकाया गया, उस समय मधुबनी डीएम अपने कार्यालय में ही मौजूद थे। बावजूद इसके किसी अधिकारी की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। सूत्रों की मानें तो जिला प्रशासन ने इस मामले की सूचना वरीय अधिकारियों को भेज दी है और अब कानूनी विकल्पों की तलाश शुरू हो गई है।

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